साहस की खेती कैसे करें?
साहस के लिए दो बातें आवश्यक हैं। पहला है- स्वीकार करने की क्षमता तथा दूसरा है- अस्वीकार करने की क्षमता। दो विरोधी चीजें आपके पास होनी चाहिए।
यहाँ आप सही सोच रहे हैं कि यदि सभी व्यक्ति सच्चाई जानने की इच्छा रखते हैं तो सबकी बुद्धि एकसमान क्यों नहीं है। क्यों सबकी बुद्धि की अपनी-अपनी सीमा है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर है-
पहले जो हुआ हो उसे स्वीकार करना, चाहे उससे आपको जो भी नुकसान हुआ हो। नुकसान की फिक्र करने वाले लोग कभी भी साहस की खेती नहीं कर सकते हैं। अतः उनके लिए सुफलता को प्राप्त करना कठिन है।
दूसरी तरफ आप उनको कभी भी स्वीकार न करें जो आपके बुद्धि के आधार पर या जितनी गहरी सच्चाई आप देख सकते हैं, उसके आधार पर सत्य नहीं है। जो नहीं होना चाहिए, उसे किसी भी किमत पर स्वीकार नहीं करना है, चाहे पूरा समाज ही आपके विरोध में खड़ा क्यों न हो जाये।
अगर आप काफी गहरी सच्चाई देखते हैं, तो आपकी यह नैतिक, आत्मिक, सामाजिक एवं परमपिता के प्रति जिम्मेदारी बनती है कि आप सच्चाई का साथ दें। इस प्रकार आप धीरे-धीरे ईश्वर के अंग हो जायेंगें।
आपका व्यवहार एक माता-पिता के जैसा होना चाहिए, जो अपने बच्चों को मिट्टी खाने नहीं देते, चाहे बच्चा कितना भी रोयें। परन्तु ऐसे माता-पिता बनने से बचें जो मात्र अपने अहं भाव के कारण बच्चों को सच्चाई से दूर रखते हैं ताकि उनको कोई बुरा न कहे।
हमें एक सामाजिक स्थिति को याद रखना है कि लोग या तो गुलाम बनते हैं या गुलाम बनाते हैं। समाज के निगाह में मालिक वह है जो सफल है तथा गुलाम वह है जो असफल है। यही कारण है कि थोड़े से लोग जो सुफल होना चाहते हैं, वो या तो गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं या सुफलता की राह को छोड़कर सफलता की राह पकड़ लेते हैं।